Transfer of Power Agreement
१) इस संधि की शर्तों के अनुसार हम आज भी अंग्रेजों के अधीन ही हैं. वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth nations अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Games हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का अर्थ होता है 'समान संपत्ति'. किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति. आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो. Commonwealth में 71 देश हैं और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है परन्तु भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की आवश्यकता होती है क्योंकि वो दूसरे देश में जा रहे हैं अर्थात इसका अर्थ निकालें तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है अथवा फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की आवश्यकता नहीं होती है यदि दोनों बाते सही हैं तो 15 अगस्त 1947 को हमारी स्वतंत्रता की बात कही जाती है वो मिथ्या है एवं Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है ना क़ि Independent Nation के रूप में. इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अतिरिक्त किसी को भी नहीं. परन्तु ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या अर्थ है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था अर्थात हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है. ये है राजनितिक दासता, हम कैसे मानें क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं. एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक दास देश दुसरे दास देश के यहाँ खोलता है परन्तु इसे Embassy नहीं कहा जाता. एक मानसिक दासता का उदाहरण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के समाचार पत्रों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स ,(ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डायना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |
०२) भारत का नाम INDIA रहेगा और पूरे संसार में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा तथा सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा. हमारे व आपके लिए ये भारत है परन्तु दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " परन्तु दुर्भाग्य इस महान देश का क़ि ये भारत के स्थान पर इंडिया हो गया. ये इसी संधि के शर्तों में से एक है. अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है. कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा तथा ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस व्यक्ति की बात में कितनी सत्यता है मैं नहीं जानता, परन्तु भारत जब तक भारत था तब तक तो संसार में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है |
०३) भारत की संसद में वन्दे मातरम नहीं गाया जायेगा अगले 50 वर्षों तक अर्थात 1997 तक. 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस समस्या को उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित स्वतंत्र देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है और वन्देमातरम को लेकर मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था. इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के मन को ठेस पहुचाये.
०४) इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जीवित अथवा मृत अंग्रेजों के हवाले करना था. यही कारण रहा क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को ज्ञात नहीं है. समय समय पर कई अफवाहें फैली परन्तु सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और ना ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई. अर्थात भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी (जो वास्तव में भारत के 'राष्ट्रपिता' थे, गाँधी जी तो 'प्लांट' किये हुए राष्ट्रपिता थे, ये भी देश का दुर्भाग्य ही था) अपने ही देश के लिए बेगाने हो गए. सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को ज्ञात होगा ही परन्तु महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में आज़ाद हिंद फ़ौज बनाई गयी थी और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से सहायता ली थी जो कि अंग्रेजों के शत्रु थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे अधिक हानि पहुंचाई थी और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों के कारण से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दूसरे के कट्टर शत्रु थे. एक शत्रु देश की सहायता से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी ओर उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस के कारण से कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के शत्रु थे |
०५) इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक तथा अभी कुछ समय पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने नयायालय में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) |
०६) आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक पुस्तक की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि के नियमों के अनुसार है. ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था. इसने इस देश की हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था. इसने किसानों पर सबसे अधिक गोलियां चलवाई थी. 1857 की क्रांति के पश्चात कानपुर के निकट बिठुर में व्हीलर व नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को हत्या करवा दी थी चाहे वो गोदी का बच्चा हो अथवा मरणासन्न स्थिति में पड़ा कोई वृद्ध. इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी प्रारंभ हुई थी तथा वही भारत में आ गयी. भारत स्वतंत्र हुआ तो ये समाप्त होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम में ही परिवर्तन कर देते. परन्तु वो परिवर्तित नहीं किया गया क्योंकि ये इस संधि में है |
०७) इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेंगे परन्तु इस देश में कोई भी नियम चाहे वो किसी क्षेत्र में हो परिवर्तित नहीं जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 नियम वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का अर्थ Irish है वहीँ भारत के IPC में "I" का अर्थ Indian है शेष सब के सब कंटेंट एक ही है, कोमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कोमा बदले हुए |
०८) इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे. नगर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे. आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं. लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी नगर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (वैसे वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं. आप भी अपने नगर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक नगर है सूरत, इस सूरत में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला. अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये दासता का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है |
०९) हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और हास्यप्रद ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग प्रकार की शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक विपरीत है. मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? यदि नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई महत्व नहीं है. इसके विपरीत उनके यहाँ ऐसा कदापि नहीं है आप यदि कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है परन्तु कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा. नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की आवश्यकता नहीं होती है. हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है. ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था की देन है, अर्थात आप भले ही 70 नंबर में फेल है परन्तु 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसे शिक्षा तंत्र से क्या उत्पन्न हो रहे हैं वो सब आपके सामने ही है और यही अंग्रेज चाहते थे. आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है अन्थ्रोपोलोग्य.| जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें दास लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में प्रारंभ किया था और आज स्वतंत्रता के 64 वर्षों के पश्चात भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है |
१०) इस संधि की शर्तों के अनुसार हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा अर्थात हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में समाप्त हो जाये ये षडंत्र किया गया. आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था परन्तु ऐसा कर नहीं पाए. संसार में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप रोगग्रस्त हों तो आपका इलाज होगा परन्तु आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप रोगग्रस्त ही मत पड़िए | आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ, जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में रोग शैय्या पर पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का रक्त दूषित हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और रक्त निकल जाने के कारण से जोर्ज वाशिंगटन का देहांत हो गया. ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख कर गया था अर्थात कहने आशय ये है क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय और ये सब आयुर्वेद के कारण से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारी सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |
११) इस संधि के अनुसार हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा. हमारे देश के समृद्धि और यहाँ उपस्थित उच्च तकनीक के कारण ये गुरुकुल ही थे और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था "“I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation”. गुरुकुल का अर्थ हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो कि हमारी मूर्खता है यदि आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे.
१२) इस संधि में एक और विशेष बात है, इसमें कहा गया है क़ि यदि हमारे देश के (भारत के) न्यायालय में कोई ऐसा केस आ जाये जिसके निर्णय के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके निर्णय को लेकर संविधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे केसों का निर्णय अंग्रेजों की न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमें लागू नहीं होगा. कितनी लज्जास्पद स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा.
१३) भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरूद्ध था और संधि की गणनानुसार ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ कर जाना था और वो चली भी गयी परन्तु इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से पर शेष 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी और उसी का परिणाम है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां स्वतंत्रता के पश्चात भी इस देश में बची रह गयी और लूटती रही और आज भी वो सब लूट रही है.|
१४) अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का भाग है. आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है तथा उन 1% लोगों को देखो क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और uno में जा कर भारत के स्थान पर पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |
१५) आप में से बहुत लोगों को स्मरण होगा क़ि हमारे देश में स्वतंत्रता के 50 साल के पश्चात तक संसद में वार्षिक बजट संध्या को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में संध्या के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी दासता में रहा है ये देश. ये भी इसी संधि का भाग है |
१६) 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम बनाया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज की आवश्यकता थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे. इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड प्रारंभ किया. वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय प्रारंभ किया गया और वो आज भी जारी है. जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था. आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में.
१७) अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था. मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई यदि गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था. अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना प्रारंभ किया, पहला मदिरालय प्रारंभ किया, पहला वेश्यालय प्रारंभ किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां मदिरालय खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला | ऐसे पूरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों की. अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब सरलता से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के पश्चात ये सब समाप्त हो जाना चाहिए था परन्तु नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है.
१८) हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो वास्तव में अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड की संसदीय प्रणाली है. ये कहीं से भी न संसदीय है और ना ही लोकतान्त्रिक है. परन्तु इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में कहा गया है.
०२) भारत का नाम INDIA रहेगा और पूरे संसार में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा तथा सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा. हमारे व आपके लिए ये भारत है परन्तु दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " परन्तु दुर्भाग्य इस महान देश का क़ि ये भारत के स्थान पर इंडिया हो गया. ये इसी संधि के शर्तों में से एक है. अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है. कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा तथा ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस व्यक्ति की बात में कितनी सत्यता है मैं नहीं जानता, परन्तु भारत जब तक भारत था तब तक तो संसार में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है |
०३) भारत की संसद में वन्दे मातरम नहीं गाया जायेगा अगले 50 वर्षों तक अर्थात 1997 तक. 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस समस्या को उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित स्वतंत्र देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है और वन्देमातरम को लेकर मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था. इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के मन को ठेस पहुचाये.
०४) इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जीवित अथवा मृत अंग्रेजों के हवाले करना था. यही कारण रहा क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को ज्ञात नहीं है. समय समय पर कई अफवाहें फैली परन्तु सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और ना ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई. अर्थात भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी (जो वास्तव में भारत के 'राष्ट्रपिता' थे, गाँधी जी तो 'प्लांट' किये हुए राष्ट्रपिता थे, ये भी देश का दुर्भाग्य ही था) अपने ही देश के लिए बेगाने हो गए. सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को ज्ञात होगा ही परन्तु महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में आज़ाद हिंद फ़ौज बनाई गयी थी और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से सहायता ली थी जो कि अंग्रेजों के शत्रु थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे अधिक हानि पहुंचाई थी और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों के कारण से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दूसरे के कट्टर शत्रु थे. एक शत्रु देश की सहायता से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी ओर उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस के कारण से कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के शत्रु थे |
०५) इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक तथा अभी कुछ समय पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने नयायालय में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) |
०६) आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक पुस्तक की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि के नियमों के अनुसार है. ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था. इसने इस देश की हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था. इसने किसानों पर सबसे अधिक गोलियां चलवाई थी. 1857 की क्रांति के पश्चात कानपुर के निकट बिठुर में व्हीलर व नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को हत्या करवा दी थी चाहे वो गोदी का बच्चा हो अथवा मरणासन्न स्थिति में पड़ा कोई वृद्ध. इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी प्रारंभ हुई थी तथा वही भारत में आ गयी. भारत स्वतंत्र हुआ तो ये समाप्त होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम में ही परिवर्तन कर देते. परन्तु वो परिवर्तित नहीं किया गया क्योंकि ये इस संधि में है |
०७) इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेंगे परन्तु इस देश में कोई भी नियम चाहे वो किसी क्षेत्र में हो परिवर्तित नहीं जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 नियम वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का अर्थ Irish है वहीँ भारत के IPC में "I" का अर्थ Indian है शेष सब के सब कंटेंट एक ही है, कोमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कोमा बदले हुए |
०८) इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे. नगर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे. आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं. लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी नगर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (वैसे वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं. आप भी अपने नगर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक नगर है सूरत, इस सूरत में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला. अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये दासता का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है |
०९) हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और हास्यप्रद ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग प्रकार की शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक विपरीत है. मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? यदि नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई महत्व नहीं है. इसके विपरीत उनके यहाँ ऐसा कदापि नहीं है आप यदि कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है परन्तु कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा. नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की आवश्यकता नहीं होती है. हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है. ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था की देन है, अर्थात आप भले ही 70 नंबर में फेल है परन्तु 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसे शिक्षा तंत्र से क्या उत्पन्न हो रहे हैं वो सब आपके सामने ही है और यही अंग्रेज चाहते थे. आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है अन्थ्रोपोलोग्य.| जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें दास लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में प्रारंभ किया था और आज स्वतंत्रता के 64 वर्षों के पश्चात भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है |
१०) इस संधि की शर्तों के अनुसार हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा अर्थात हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में समाप्त हो जाये ये षडंत्र किया गया. आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था परन्तु ऐसा कर नहीं पाए. संसार में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप रोगग्रस्त हों तो आपका इलाज होगा परन्तु आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप रोगग्रस्त ही मत पड़िए | आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ, जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में रोग शैय्या पर पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का रक्त दूषित हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और रक्त निकल जाने के कारण से जोर्ज वाशिंगटन का देहांत हो गया. ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख कर गया था अर्थात कहने आशय ये है क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय और ये सब आयुर्वेद के कारण से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारी सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |
११) इस संधि के अनुसार हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा. हमारे देश के समृद्धि और यहाँ उपस्थित उच्च तकनीक के कारण ये गुरुकुल ही थे और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था "“I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation”. गुरुकुल का अर्थ हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो कि हमारी मूर्खता है यदि आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे.
१२) इस संधि में एक और विशेष बात है, इसमें कहा गया है क़ि यदि हमारे देश के (भारत के) न्यायालय में कोई ऐसा केस आ जाये जिसके निर्णय के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके निर्णय को लेकर संविधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे केसों का निर्णय अंग्रेजों की न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमें लागू नहीं होगा. कितनी लज्जास्पद स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा.
१३) भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरूद्ध था और संधि की गणनानुसार ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ कर जाना था और वो चली भी गयी परन्तु इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से पर शेष 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी और उसी का परिणाम है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां स्वतंत्रता के पश्चात भी इस देश में बची रह गयी और लूटती रही और आज भी वो सब लूट रही है.|
१४) अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का भाग है. आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है तथा उन 1% लोगों को देखो क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और uno में जा कर भारत के स्थान पर पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |
१५) आप में से बहुत लोगों को स्मरण होगा क़ि हमारे देश में स्वतंत्रता के 50 साल के पश्चात तक संसद में वार्षिक बजट संध्या को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में संध्या के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी दासता में रहा है ये देश. ये भी इसी संधि का भाग है |
१६) 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम बनाया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज की आवश्यकता थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे. इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड प्रारंभ किया. वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय प्रारंभ किया गया और वो आज भी जारी है. जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था. आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में.
१७) अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था. मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई यदि गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था. अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना प्रारंभ किया, पहला मदिरालय प्रारंभ किया, पहला वेश्यालय प्रारंभ किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां मदिरालय खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला | ऐसे पूरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों की. अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब सरलता से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के पश्चात ये सब समाप्त हो जाना चाहिए था परन्तु नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है.
१८) हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो वास्तव में अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड की संसदीय प्रणाली है. ये कहीं से भी न संसदीय है और ना ही लोकतान्त्रिक है. परन्तु इस देश में वही सिस्टम है क्योंकि वो इस संधि में कहा गया है.
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